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Thursday, 16 August 2012

क्या यह असम की प्रतिक्रिया है? - मनीष मंजुल (समर्थ – महामंत्री)



देश में पूर्वोत्तर के नागरिकोँ को डर क्यों है? असम की पहली जिहादी प्रतिक्रिया मुंबई में आजाद मैदान पर हुई| इस घटनाक्रम में मुंबई पुलिस की दुर्गति को पूरे देश ने देखा | इस के बाद पूर्वोत्तर के लोग प्रशासन पर कैसे भरोसा करें? पुलिस की कमजोर छवि सत्तापक्ष की दूरदर्शिता की कमी स्पष्ट करता है| पूर्वोत्तर के लोगो में जो डर है, वो दूर कैसे होगा? माँ पिता नहीं चाहते उनका बच्चा किसी जिहादी द्वारा बलि चढ़े | इसके अन्य प्रतिफल क्या होंगे? क्या सत्ता पक्ष, मीडिया और विपक्ष ने इस को सोचा ? पढ़े लिखे नौकरीपेशा लोग भी अफवाहों के जंजाल में फंस रहे हैं| वे अपने घरों से भाग रहे हैं| उनके जीवन पर जिहादी आक्रमण का तनाव उनको अपने घर जाने के लिए मजबूर कर रहा है| पूर्वोत्तर के नागरिक साधारणतया स्थानीय लोगो से ज्यादा संपर्क नहीं रख पाते है | इस कमजोर कड़ी के कारण पलायन ही उपाय दिखता होगा| 

इस तनाव का दुष्परिणाम क्या हो सकता है? इसकी कल्पना भी सरकार को नहीं है| क्या होगा जब बड़ी संख्या में ये डरे हुए लोग पूर्वोत्तर में अपने घरों तक पहुंचेंगे? पलायन के कारण उनका जो नुकसान हो रहा है उसकी टीस कहाँ, कैसे और किस पर निकलेगी?

असम के दंगों को सही समय पर नियन्त्रित नहीं करना भी केंद्र सरकार की दूरदर्शिता की कमी को स्पष्ट करता है| दंगों के पहले चरण के बाद वहां केंद्र सरकार ने राज्य सरकार पर असरदार कार्रवाई के लिए दबाव क्यों नहीं बनाया

असम और मुंबई में जो समानता है, वह विदेशी घुसपैठ है| असम में विदेशी मुसलमान घुसपैठिये सत्ता हासिल करने का साधन बन चुके है| असम में विदेशी घुसपैठियों को स्थानीय लोगों ने अस्वीकार किया है| मुंबई में इन्ही विदेशी घुसपैठियों के समर्थन में भारतीय मुसलामानों ने पाकिस्तानी झंडा लेकर मजहब और मजहबी रिश्तों को देश की मिट्टी से बड़ा माना | यह इतनी भयावह मानसिकता है, जिसके दुष्परिणाम की कल्पना भी नहीं की जा सकती |

यदि ये मानसिकता भारत में जड़ जमाएगी तो देश में सद्भाव और समरसता की जड़ें हिल जाएँगी | यह मानसिकता भारत को किस दिशा में ले जायेगी?  क्या हम इसकी कल्पना कर सकते है?

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