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Wednesday 2 May 2012

साम्प्रदायिक हिंसा बिल की राजनीति - सतीश पेडणेकर

साम्प्रदायिक हिंसा बिल की राजनीति
सतीश पेडणेकर

दरअसल एन. ए. सी. ने दंगा शब्द की नई परिभाषा ही गढ़ दी है। पहले दो समुदायों के बीच होनेवाली हिंसा को दंगा कहा जाता था लेकिन एन. ए. सी. की इस बिल के मुताबिक दंगे की नई परिभाषा यह है किसी राज्य मे बहुसंख्यकों द्वारा अल्पसंख्यकों के खिलाफ की जाने वाली हिंसा।

न्याय के सामने सबकी समानता के सिद्धांत का इससे बड़ा मजाक क्या हो सकता है कि धर्म के आधार पर अब यह तय होगा कि कौन दंगों जैसे संगीन अपराधों का दोषी होगा और कौन नहीं। इसके लिए कोई कार्रवाई नहीं होगी। ऐसा न्याय तो किसी अंधेर नगरी में ही हो सकता है। यह बिल अगर कानून बन गया तो इस कानून के तहत गोधरा में 60 कारसेवकों को जिन्दा जलानेवाले तो दोषी माने ही नहीं जाएंगे। इसी तरह पश्चिम बंगाल के देगंगा में हाल ही में वहां के हिंदुओं पर अत्याचार करनेवाले मुस्लिम भी साम्प्रदायिक हिंसा के दोषी नहीं होंगे। क्योंकि दोनों राज्यों में हिंदू बहुसंख्यक जो हैं और बिल का मानना है कि साम्प्रदायिक हिंसा केवल बहुसंख्यक ही कर सकते हैं अल्पसंख्यक नहीं।

सेनिया गांधी की अध्यक्षतावाली एन. ए. सी. द्वारा तैयार किया गया इस बिल का मसौदा कांग्रेस के पतन की त्रासदी की कहानी कहता है।

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